चंदन का चर्खा निछावर है इस्पाती बुलेट पर
निछावर है अगरबत्ती चुरुट पर, सिग्रेट पर
नफाखोर हंसता है सरकारी रेट पर
फ्लाई करो दिन-रात, लात मारो पब्लिक के पेट पर
पुलिस आगे बढ़ी-
क्रांति को संपूर्ण बनाएगी
गुमसुम है फौज-
वो भी क्या आजादी मनाएगी
बंध गई घिग्घी-
माथे पर दर्द हुआ
नंगे हुए इनके वायदे-
नाटक बे-पर्द हुआ!
मिनिस्टर तो फूकेंगे अंधाधुंध रकम
सुना करेगी अवाम बक-बक-बकम
वतन चुकाएगा जहालत की फीस
इन पर तो फबेगी खादी नफीस
धंधा पालिटिक्स का सबसे चोखा है
बाकी ति ठगैती है, बाकी तो धोखा है
कंधों पर जो चढ़ा वो ही अनोखा है
हमने कबीर का पद ही तो धोखा है.
(1978)
("जनसत्ता" (रविवारी), 9 अगस्त 1998 से साभार)