शुक्रवार, 3 मई 2013

भारतीय न्याय-प्रणाली (भाग- 2)



       जो लोग सत्ता में हैं, उन्हें सरकार या फिर न्यायपालिका की कार्य प्रक्रिया को बेहतर बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, जबकि आम आदमी परेशान है। वह भुगत रहा है। सत्ता में बैठे लोग तो उल्टा इसका फायदा उठा रहे हैं। जो भ्रष्ट लोग हैं उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई ही कोर्ट में नहीं चल पाती है। वे सत्ता का सुख भोगते रहते हैं। दूसरी तरफ जो अपराध करते हैं, उनको भी इससे फायदा हो रहा है।
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       जब न्यायपालिका जल्दी-जल्दी काम नहीं करती, उस वक्त बड़ी-बड़ी कम्पनियों को जब ऑर्बिटेशन करवाना होता है, तो वे सेवा-निवृत्त जजों को ऑर्बिट्रेटर नियुक्त करती हैं। दो लाख रुपया रोजाना जजों को बतौर शुल्क देती हैं। बड़ी संख्या में ऐसे सेवा-निवृत्त जज हैं, जो करोड़ों रुपये ऑर्बिट्रेटर के नाम पर कमा रहे हैं। यदि अदालत जल्दी-जल्दी काम करने लगे, तो इनका यह काम-धन्धा बन्द हो जायेगा। यही कारण है कि समस्या का हल ढूँढ़ने में जजों की तरफ से भी कोई पहल नहीं होती।
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       वर्तमान समय में हमारी जो पुलिस व्यवस्था है, वह अँग्रेजों की बनायी हुई है। अँग्रेजों ने इस व्यवस्था को इसलिए नहीं बनाया था कि हिन्दुस्तान की आम जनता को इससे सुरक्षा मिले, या फिर, जो लोई अपराध करे, उसे तुरन्त सजा मिले। उन्होंने इस व्यवस्था को इस उद्देश्य से बनाया था कि उनकी अपनी हुकूमत बनी रहे। इसलिए पुलिस पर नियंत्रण बिलकुल ऊपर से था। उसकी जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी। उस समय लोकतंत्र भी नहीं था।
       लेकिन जब लोकतंत्र आया, हिन्दुस्तान आजाद हुआ, संविधान बना, तो यह मान लिया गया कि आज से इस देश की जनता ही सबकुछ है। लेकिन अँग्रेजों ने पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका की जो संरचना बनायी थी, उसमें भी संरचनात्मक बदलाव की जरुरत थी। पर ये जरुरी बदलाव नहीं किये गये। यह जरूरी था कि ऊपर से नियंत्रण को कम किया जाय। इन्हें जनता के प्रति जवाबदेह बनाया जाय। पर ऐसा नहीं हो सका है।
इसका परिणाम है कि शीर्ष पर बैठे लोग अपराध करने लगे हैं। कई मंत्री, सांसद और विधायक अपराधी हैं। कई नौकरशाह भी अपराध में संलिप्त हैं। अब इन्हीं के हाथों में पुलिस का नियंत्रण है। ऐसी स्थिति में वे लोग पुलिस का दुरुपयोग बखूबी करते हैं। अब जब नियंत्रण करने वाले ही दुरुपयोग करते हैं, तब वे स्वतः पुलिस को नियंत्रित करने का हक खो देते हैं। पुलिस उनके हाथों से बाहर हो जाती है और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करती है।
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न्यायाधीशों की जवाबदेही भी तय हो। आज तो इनकी कोई जवाबदेही ही नहीं है। आप किसी के पास न्यायाधीश की शिकायत नहीं कर सकते। किसी के पास भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने का अधिकार नहीं है। उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं है। आवश्यक है कि न्यायपालिका को भी पारदर्शी बनाया जाय।
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(साभार उद्धृत अंश: समाचार-विचार पाक्षिक "प्रथम प्रवक्ता", नोएडा, उप्र, अंक- 1-15 फरवरी 2013, आलेख- 'पुलिस और न्यायपालिका में सुधार की जरुरत', लेखक- प्रशान्त भूषण)

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