दिसम्बर 1971 में भारत-पाक युद्ध पूरे जोर पर था।
स्क्वाड्रन लीडर सुधीर श्रीवास्तव एक सैनिक ‘इण्टेलिजेन्स’ यूनिट का ऑफिसर कमाण्डिंग (ओ सी) था।
यह पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच रेडियो टेलीफोन लिंक पर की जा रही वरिष्ठ
सैनिक एवं सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों एवं
राजनीतिज्ञों की वार्त्ताओं का अपरोधन (इण्टरसेप्शन) कर टेप रिकॉर्ड करने का काम
करती थी। बहुत ही महत्वपूर्ण था यह काम, क्योंकि
इनसे प्रायः ऐसी गुप्त एवं राजनीतिक सूचनाएं प्राप्त हो जाती थीं जो अन्यथा पता
लगाना कठिन कार्य था।
सुधीर अपना कार्य बहुत निष्ठा एवं लगन से करता था। उसकी यूनिट
में उसके अधीन चार अफसर एवं चालीस अन्य कर्मचारी कार्यरत थे। इनका काम था
पाकिस्तान की गुप्त एवं हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो लिंक का पता लगाना तथा उनपर की जा
रही वार्त्ताओं को सुनते हुए उनको रिकॉर्ड करना। बहुत धीरज से एवं ठण्उे दिमाग से
करना पड़ता था इस काम को, क्योंकि अधिकतर
इनमें कोई काम की बात नहीं मिल पाती थी। कभी-कभी किसी लिंक पर सैनिक रणनीति की भी
चर्चा होती थी, किन्तु ऐसे अवसर पर पाकिस्तानी
तकनीशियन इस लिंक पर एक एनक्रिप्शन (कोडिंग) कार्ड लगा देते थे जिससे उनकी
वार्त्ता को एक एक सामान्य श्रोता बिलकुल भी नहीं समझ सकता था। इसको समझने के लिए
एक डिक्रिप्शन (डिकोडिंग) कार्ड लगाना पड़ता था। पाकिस्तान सेना को यह कोडिंग एवं
डिकोडिंग प्रणाली उनके एक शक्तिशाली एवं उन्नत मित्र देश ने दी थी। सुधीर
श्रीवास्तव का कार्य था वार्त्ता के इस गुप्त कोड को भेद कर उसको समझ पाने योग्य
बनाना। यह उच्च तकनीक का एक अत्यन्त जटिल कार्य था, जिसे सेकण्डों में करना आवश्यक था क्योंकि ये टेलीफोन वार्त्ताएं प्रायः
अधिक लम्बी नहीं होती थीं। सुधीर एक होनहार इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर था और ऐसे कामों
के लिए उसने विशेष प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। पिछले पाँच वर्षों से सुधीर इसी
विषय पर शोध भी कर रहा था। अभी तक कुँवारा होने के कारण सुधीर शोध कार्य को काफी
समय दे पाता था। उसने स्वयं ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स सर्किट विकसित किये थे जिनकी
सहायता से वह पाकिस्तान द्वारा प्रयोग में लाये गये गूढ़ से गूढ़ कोडों को भी
सेकण्डों में भेद कर पाने में सफल हो जाता था। अपने कनिष्ठ अधिकारियों फ्लाइट
लेफ्टिनेण्ट दिवाकर पाण्डे, फ्लाइंग अफसर
मुहम्मद असलम एवं सार्जेण्ट डिसूजा के साथ उसने अनेकों ऐसे डिक्रिप्शन सर्किटों का
विकास कर एक लायब्रेरी बना रखी थी। अपने अधिकारियों एवं कुछ सुपात्र तकनीकी
कर्मचारियों को उसने स्वयं रूचि लेकर प्रशिक्षित भी कर दिया था जिससे ये सभी
पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा लगाये गये कोड को डि-कोड कर लेते थे और उनकी गुप्त एवं
परम गुप्त टेलीफोन वार्त्ताओं को इण्टरसेप्ट कर टेप रिकॉर्डरों पर अभिलिखित कर
लेते थे। उसके बाद इन टेपों को ध्यानपूर्वक सुनकर ओर उनका विश्लेषण कर उस पर उचित
आवश्यक कार्यवाही या तो यूनिट स्तर पर ही कर ली जाती थी या फिर उच्च कमान को भेज
दी जाती थी।
प्रायः ही पाकिस्तानी अधिकारी उर्दू एवं अंग्रेजी के अतिरिक्त
बंगाली, सिन्धी एवं पश्तो भाषा में भी बात करते थे।
इसलिए सुधीर के यूनिट में इन भाषाओं की अनुवादक महिलाएं थीं। शर्मिष्ठा, रितु एवं अफसाना क्रमशः बंगाली, सिन्धी और पश्तो भाषा की अनुवादक थीं। रितु चन्दीरमानी 25 वर्ष की विवाहिता थी। अफसाना और शर्मिष्ठा दोनों ही 23 वर्ष की कुमारियाँ थीं। तीनों ही अपने काम में
चुस्त-दुरुस्त। वैसे तो इन महिलाओं का कार्यकाल दिन में ही रहता था किन्तु
आवश्यकता पड़ने पर उन्हें रात में भी आना पड़ता था। तीनों को ही अपने काम और अपने
देश के साथ बहुत लगाव था।
अफसाना के अब्बाजान थल सेना में ब्रिगेडियर थे इसलिए उसे सेना
के अनुशासन ही नहीं, सेना की परम्पराओं और शिष्टाचार का
भी अच्छा ज्ञान था। रितु एवं शर्मिष्ठा ने भी अफसाना से इन गुणों को थोड़ा बहुत जान
लिया था। अभी दो महीने पहले ही तो स्क्वाड्रन लीडर सुधीर ने अपनी यूनिट के ‘रेजिंग डे’ पर ‘आफिसर्स मेस’ में एक डिनर डांस
का भी आयोजन किया था। इस पार्टी में सेना के अनेक अधिकारियों के साथ-साथ नगर के
मेयर, पुलिस कमिश्नर आदि भी आये थे।
सुधीर को याद आया कि वायु सेना बैण्ड की सुरीली धुनों पर अनेक
जोड़े डांसिंग फ्लोर पर थिरक रहे थे। सुधीर भी अफसाना के साथ डांस कर रहा था। पिछले
कुछ दिनों से साथ-साथ काम करते रहने से बैचलर सुधीर के हृदय में अफसाना के प्रति
कोमल भावनाएं अंकुरित होने लगी थीं। अफसाना को इसका थोड़ा अन्दाजा तो हो रहा था।
किन्तु उसने इस बारे में अभी सोचा नहीं था। डांस करते समय सुधीर धीरे-धीरे अफसाना
के कान में उसके डांस के साथ-साथ उसकी सुन्दरता की भी तारीफ कर रहा था।
तभी एक सुदर्शन युवक ने स्क्वाड्रन लीडर सुधीर के बाएं कन्धे
पर हल्के से टैप किया, अपना परिचय दिया- मेजर प्रेम प्रकाश,
और अफसाना के साथ डांस करने की इच्छा प्रकट की। चा-चा-चा
की आकर्षक धुन पर प्रेम लुभावनी बातों से अफसाना को लुभाने की कोशिश कर रहा था।
अफसाना प्रेम की बातों से प्रभावित होती भी दिख रही थी।
धुन समाप्त होने पर अफसाना सुधीर की ओर बढ़ी ही थी कि बैण्ड पा
फॉक्सट्रॉट की धुन बजने लगी। मेजर प्रेम प्रकाश ने अफसाना से एक और डाँस करने की
प्रार्थना की। दोनों फिर से फ्लोर पर पहुँच गये और तन्मय होकर डाँस करने लगे। धुन
बहुत ही रोमांटिक थी, और नाचते-नाचते प्रेम प्रकाश ने
अफसाना की कमर पर अपने हाथ का हल्का सा दवाब डालकर उसे लगभग अपने चौड़े सीने से लगा
लिया था। वह अफसाना को अपने बारे में बताने लगा। जब अफसाना को पता लगा कि मेजर
प्रेम प्रकाश कुछ वर्ष पहले उसके अब्बा ब्रिगेडियर लतीफ के साथ काम कर चुका है तब
अफसाना की उत्कण्ठा मेजर की ओर बढ़ी। फिर तो एक डांस के बाद दूसरा और दूसरे के बाद
तीसरा, चौथा.......। डिनर पर जाते-जाते अफसाना भी
मेजर प्रेम प्रकाश से ‘प्रेम’ तक के सम्बोधन पर पहुँच चुकी थी। पार्टी समाप्त होते-होते उन्होंने अगले
दिन किसी रेस्त्रां में मिलने का समय भी तय कर लिया था। स्क्वाड्रन लीडर सुधीर ने
अपनी कोमल भावनाओं को वहीं दबा दिया।
पिछले दो महीनों में मेजर प्रेम प्रकाश लगभग हर दूसरे दिन ‘अपनी अफसी’ को पिक अप करने आ
जाता था। कभी वह अफसाना को अपने मेस में ले जाता था और कभी दोनों दिनभर के लिए
गायब हो जाते थे। एकाध बार तो पश्तो रिकार्डिंग के लिए अफसाना की आवश्यकता पड़ी।
किन्तु उसके न मिल पाने पर सुधीर को बहुत झुंझलाहट हुई। अगले दिन सुधीर ने अफसाना
को अपने ऑफिस में बुलाकर समझाया ही नहीं, उसकी
भर्त्सना भी की। सुधीर ने समझाया, ‘देखो अफसाना,
दोनों देशों में तनाव बढ़ने के साथ-साथ टेलीफोन ट्रैफिक
भी बढ़ता जा रहा है इसलिए अनुवाद का काम भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में तुम्हें
अपने काम की ओर निष्ठापूर्वक ध्यान देना चाहिए।’ अफसाना ने माफी माँग ली किन्तु अगले दिन जब ‘उसका प्रेम’ उसे लेने आया तो वह ‘ना’ नहीं कह पायी।
इसी बीच मेजर प्रेम प्रकाश धीरे-धीरे उनके अनुवाद के काम के
बारे में पूछने लगा। यह सोचकर कि प्रेम स्वयं आर्मी में मेजर है, अफसाना उसे केवल अपने काम के बारे में ही नहीं, अपनी यूनिट के बारे में भी बतलाने लगी। प्रेम प्रकाश उसकी
बातों को बड़े ध्यान और रुचि के साथ सुनता था। साथ ही वह अफसाना की तारीफ भी करता
रहता था और समझाता रहता था कि अफसी अपने यूनिट एवं अपने देश के लिए बहुत
महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। यह सुनका ‘उसकी अफसी’
उसे अनेक ऐसी वार्त्ताओं के विषय में बताने लगी जो गुप्त
अथवा परम गुप्त होती थी। प्रेम प्रकाश इनको सुनकर तारीफों के पुल बाँध देता। अब वह
खोद-खोद कर और भी जानकारियाँ पूछने लगा। कुछ दिनों से वह दिन के समय अफसाना से
मिलने उसके कार्यालय भी पहुँचने लगा। उसके व्यस्त होने पर मेजर प्रेम प्रकाश रितु,
शर्मिष्ठा तथा अन्य कर्मचारियों से भी मित्रता बढ़ाने लगा
ओर गाहे-बगाहे उनको छोटी-मोटी गिफ्ट भी दे देता इससे वे भी मेजर से मिलने को
उत्सुक रहते थे।
एकाध बार सुधीर को ऐसा आभास हुआ कि उसकी डिक्रिप्शन सर्किट की
लायब्रेरी से किसी ने छेड़-छाड़ की है। पर कोई ठोस सबूत न होने के कारण वह कोई
कार्यवाही नहीं कर सका। हाँ, उसने लायब्रेरी
की सुरक्षा के कड़े प्रबन्ध अवश्य कर दिये। फ्लाइंग अफसर असलम एवं सार्जेण्ट डिसूजा
ने रिपोर्ट दी कि कार्पोरल हरि अग्रवाल ने लायब्रेरी में अनाधिकारिक रुप से प्रवेश
कर नये विकसित डिक्रिप्शन सर्किटों के नम्बर नोट किये हैं। डिसूजा ने यह भी बताया
कि अग्रवाल के रहन-सहन के स्तर में अचानक बदलाव देखा गया है। साइकिल के स्थान पर
उसके पास अब एक स्कूटर है और खर्च करने के लिए पैसे भी अधिक आ गये हैं। स्क्वाड्रन
लीडर सुधीर मन ही मन खुश हुआ कि नकली डिक्रिप्शन सर्किट रखने की उसकी योजना निष्फल
नहीं हुई। संदिग्ध व्यक्ति की पहचान हो गयी।
असलम ने अपनी रिपोर्ट में बतलाया कि अफसाना पिछले कुछ दिनों
से प्रायः ही रितु और शर्मिष्ठा से उनके द्वारा अनुवाद किये गये वार्त्ताओं के
बारे में पूछने लगी है जिनसे उसका कोई मतलब नहीं है। अब वह कभी-कभी उनको ट्रीट भी
देने लगी है। वह सिन्धी तथा बंगाली वार्त्ताओं के उर्दू तथा अंग्रेजी के टेपों को
पढ़ने का प्रयास भी करने लगी है।
अब स्क्वाड्रन लीडर सुधीर बहुत तेजी से सोचने लगा। उसको ऐसे
कदम उठाने थे जिनसे किसी को शक भी न हो और साजिश का पता भी लग जाए। सबसे पहले उसने
मुख्यालय में अपने इण्टेलिजेंस डायरेक्टर के साथ विचार-विमर्श कर उनको एक लिखित
रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए प्रार्थना की कि किसी अनुभवी गुप्तचर द्वारा उसकी यूनिट
के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कड़ी नजर रखी जाय। गुप्तचरों का जाल इस
प्रकार बिछा दिया गया कि किसी को कोई सन्देह भी नहीं हुआ। एक दिन एक गुप्तचर ने
कार्पोरल हरि अग्रवाल को सदर बाजार में एक प्रायवेट कम्यूनिकेशन सेण्टर में घुसते
देखा। गुप्तचर ने फौरन ही गुप्त वॉकी-टॉकी द्वारा अपने मुख्यालय को सूचना दी। फौरन
ही कार्पोरल अग्रवाल एवं कम्यूनिकेशन सेण्टर पर गुप्त रुप से कड़ी नजर रखी जाने
लगी।
15 नवम्बर 1971 तक सुधीर की
यूनिट का काम बहुत बढ़ गया था, क्योंकि दोनों
देशों में तनाव बढ़ने के साथ-साथ पाकिस्तान के दोनों टुकड़ों के बीच टेलीफोन
वार्त्ताओं की मात्रा बहुत बढ़ गयी थी।
1971 के युद्ध के समय भी अमरीका पाकिस्तान का हितैषी था। अनेक
अन्य सैनिक उपकरणों- जैसे, विमान, टैंक आदि के साथ-साथ उसने रेडियो संचार को गुप्त रखने के लिए
पाकिस्तान को नवीनतम तकनोलॉजी पर आधारित इनक्रिप्शन एवं डिक्रिप्शन सर्किट दिये
थे। इन्हीं इनक्रिप्शन सर्किटों के भेद पाने के लिए भारतीय इंजीनियरों ने, जिनमें स्क्वाड्रन लीडर सुधीर भी एक था, डिक्रिप्शन सर्किटों की लायब्रेरी बनायी थी। अभी तीन दिन पहले
ही तो ढाका के ए ओ सी एयर कोमोडोर इनाम-उर-रहमान की पाकिस्तानी एयर चीफ से हुई
गुप्त वार्त्ता को सुधीर के कुशल ऑपरेटर कॉर्पोरल शिन्दे ने डिक्रिप्शन सर्किट की
मदद से भेद कर टेप भी कर लिया था, जिसमें उन्होंने
अन्य बातों के अलावा कहा था, ‘सर, थैंक्यू फॉर गिविंग मी ए कमाण्ड ऑफ नथिंग।’ यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूचना थी जिससे पूर्वी पाकिस्तान
में उस समय की पाक वायु सेना की दयनीय स्थिति का पता लगता था।
30 नवम्बर 1971 को जब
ब्रिगेडियर लतीफ किसी आधिकारिक काम से आये, तो अफसाना भी उनसे मिली। उसने मेजर प्रेम प्रकाश के बारे में अपने
अब्बाजान से बताया। उन्हें प्रेम प्रकाश की फौरन याद आ गयी क्योंकि वह उनका एक
ब्रिलियण्ट अफसर था। अफसाना का मेजर के प्रति आकर्षण से उन्हें कोई आपत्ति नहीं
थी। किन्तु जब अफसाना ने मेजर प्रेम प्रकाश द्वारा उसके कार्यों में अत्यधिक रुचि
दिखाने की बात बताई तो उनके कान खड़े हुए। चलते समय उन्होंने अफसाना को सलाह दी कि
वह विस्तार से ये सभी बातें अपने ऑफिसर कमाण्डिंग (ओ सी) स्क्वाड्रन लीडर सुधीर को
अवश्य बता दे।
अफसाना ने अपने अब्बाजान की बात मानकर उन्हें (अपने ओ.सी.
स्क्वाड्रन लीडर सुधीर को) सब कुछ विस्तार से बता दिया। इन बातों को सुनकर सुधीर
का चौंकना स्वाभाविक था। उसने अफसाना से तो कुछ नहीं कहा किन्तु गुप्तचर को मेजर
प्रेम प्रकाश के बारे में ब्रीफ कर दिया जिससे उनपर चौकसी बढ़ा दी गयी।
मेजर प्रेम प्रकाश और कार्पोरल हरि अग्रवाल पर पैनी नजर रखने
का सुखद परिणाम शीघ्र ही प्राप्त हो गया। अभी शायद वे कच्चे खिलाड़ी थे। खोजबीन से
पता चला कि सदर बाजार में स्थित वह कम्यूनिकेशन सेण्टर कार्पोरल हरि अग्रवाल के एक
भतीजे के नाम था। फिर पाया गया कि मेजर प्रेम प्रकाश साधारण नागरिक भेष में उस
कम्यूनिकेशन सेण्टर में सप्ताह में प्रायः दो या तीन बार अवश्य आते थे। और फिर 1 दिसम्बर 1971 की रात 8ः30 बजे मेजर प्रेम प्रकाश और कार्पोरल
हरि अग्रवाल को उसी सेण्टर से पाकिस्तानी हाई कमीशन से सम्पर्क करते रँगे हाथों
पकड़ा गया। इस गुप्त सम्प्रेषण में पाकिस्तान को सूचना दी जा रही थी कि ‘‘उनके द्वारा प्रयोग में लाये जा रहे इनक्रिप्शन सर्किटों के
डिक्रिप्शन सर्किट भारत में बना लिये गये हैं, इसलिए वे अपने इनक्रिप्शन सर्किटों को आमूल-चूल बदल दें।’’
मेजर प्रेम प्रकाश और कार्पोरल हरि अग्रवाल को फौरन अपनी-अपनी
यूनिटों से हटा दिया गया और उनसे विस्तार से पूछ-ताछ की गयी। पता लगा कि प्रेम
प्रकाश के विद्यार्थीकाल का एक साथी अहद उल्लाह इस समय पाकिस्तानी हाई कमीशन में
तैनात है। वह एक जाना-माना जासूस है। उसे प्रेम प्रेकाश की सुरा और सुन्दरियों के
प्रति कमजोरी का पता था। उसने प्रेम प्रकाश को दोनों ही सुविधाएँ नियमित रुप से
देनी शुरू कर दी। सैनिक सूचना प्राप्त करने के लिए वह उसे काफी मात्रा में धन भी
देने लगा। सूचना प्राप्त करने पर मेजर प्रेम प्रकाश को इनाम अलग से मिलता। अफसाना
को तो मेजर प्रेम प्रकाश ने अपने प्रेम जाल में फाँसा, किन्तु कार्पोरल हरि अग्रवाल को पैसों से खरीदा। हरि अग्रवाल के भतीजे के
नाम से उसने एक कम्यूनीकेशन सेण्टर खुलवा दिया, जिसमें बाहर से तो सामान्य काम चलता था; किन्तु अन्दर गुप्त कम्यूनिकेशन चैनल बनाये गये, जो पाकिस्तानी हाई कमीशन और इस्लामाबाद तथा कराची में आई. एस. आई. से
सम्बन्ध स्थापित करते थे।
किन्तु अभी पाकिस्तानी जासूस अपना शिकंजा कस ही रहे थे कि
स्क्वाड्रन लीडर सुधीर द्वारा तत्परता से लिये गये एक्शन के कारण इस कुचक्र का
भण्डाफोड़ हो गया। मेजर प्रेम प्रकाश और कार्पोरल हरि अग्रवाल पकड़े गये। पाकिस्तानी
हाई कमीशन से अहद उल्लाह को पाकिस्तान वापस भेजवाने को कहा गया। अफसाना को चेतावनी
देकर छोड़ दिया गया। अफसाना ने अपनी गलतियों के लिए सुधीर से सच्चे दिल से माफी
माँगी और बेतरह रोने लगी। सुधीर पहले तो कुछ नहीं बोला फिर उसको समझाया कि यह रोने
का समय नहीं है। निष्ठापूर्वक काम करो।
3 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तानी
बम-वर्षक एवं युद्धक विमानों ने श्रीनगर, अवन्तीपुर,
उत्तरलाई, आगरा, अम्बाला तथा बाड़मेर पर अचानक आक्रमण करके युद्ध की घोषणा कर
दी। याह्या खाँ सोच रहे थे कि उन्होंने यह आकस्मिक आक्रमण किया, जिसके बारे में भारत ने स्वप्न में नहीं सोचा होगा। किन्तु
उन्हें नहीं पता था कि सुधीर की यूनिट ने ऐसी गुप्त वार्त्ता को टेप किया था
जिसमें इसके संकेत थे। सुधीर ने यह समाचार मुख्यालय तक पहुँचा दिया था। इसलिए
भारतीय सेना चौकस थी। उसने पाकिस्तानी आक्रमणों को विफल कर दिया और जवाबी हमला भी
कर दिया।
सुधीर के यूनिट का प्रत्येक कर्मचारी निष्ठापूर्वक अपने काम
में जुटा था। अफसाना के सिर से मेजर प्रेम प्रकाश के प्रेम जाल का भूत उतर चुका
था। रितु और अफसाना पर काम का काफी दवाब था क्योंकि सिन्धी और पश्तो भाषा में
टेलीफोन वार्त्ता बहुत बढ़ गयी थी। बंगाली अफसरों से उनका विश्वास शायद उठ चुका था।
शर्मिष्ठा ने काम चलाऊ सिन्धी और पश्तो भाषा सीख ली थी इसलिए वह भी इनके काम में
हाथ बँटाती थी।
15 दिसम्बर 1971 को सुबह-सुबह
ढाका से एक पाक आर्मी कमाण्डर को एक फोन किया गया। लगभग आठ मिनट तक बातचीत हुई। इस
टेप का अनुवाद अफसाना कर रही थी। थोड़ी देर बाद सुधीर को फ्लाइट लेफ्टिनेण्ट पाण्डे
ने फोन कर फौरन अनुवाद कक्ष में बुलवाया। स्क्वाड्रन लीडर सुधीर फौरन वहाँ पहुँचे।
अफसाना टेप के एक भाग को बार-बार रिवाइण्ड कर सुन रही थी और अपने अनुवाद किये गये पाठ्यांश
को चेक कर रही थी। जब सुधीर वहाँ पहुँचे तो अफसाना ने इयरफोन उनको दिया और उसी भाग
को रिवाइण्ड कर प्ले-बैक किया। टेप में पूर्वी पाकिस्तान के आर्मी कमाण्डर
लेफ्टिनेण्ट जेनरल टिक्का खाँ पश्तो भाषा में पाकिस्तान के किसी उच्च अधिकारी से
बातें कर रहे थे। सुधीर को टिक्का खाँ द्वारा बोले गये कुछ नाम एवं कुछ अन्य
शब्दों के अलावा कुछ अधिक समझ में नहीं आया। सुधीर ने अफसाना की ओर देखा तो उसने
सुधीर की तरफ कुछ कागज बढ़ा दिये, जिसमें अनुवाद
किया गया था। जैसे-जैसे सुधीर उस अनुवाद को पढ़ता गया, उसकी आँखें फैलती गयीं। वह बीच-बीच में पाण्डे और अफसाना की ओर प्रश्नसूचक
दृष्टि से देखता। अनुवाद को एकबार पूरा पढ़ जाने के बाद उसने एक गिलास पानी पीया और
फिर से उस भाग को दो बार पढ़ा, जिसमें लिखा था
कि उसी दिन शाम को साढ़े तीन बजे ढाका के गवर्नर हाऊस में उच्च सैनिक एवं नागरिक
अधिकारियों की एक मीटिंग गवर्नर राव फरमान की अध्यक्षता में की जायेगी, जिसमें लेफ्टिनेण्ट जेनरल टिक्का खाँ के अलावे एयर फोर्स के
एयर कोमोडोर इनाम-उर-रहमान, ढाका के पुलिस
कमिश्नर मिर्जा मुख्तार अहमद तथा छह अन्य अधिकारी भाग लेंगे। इस मीटिंग में लड़ाई
की ताजा स्थिति पर विचार किया जायेगा, उस पर बहस
होगी और अगले कदम का फैसला लिया जायेगा।
स्क्वाड्रन लीडर सुधीर ने एक बार फिर उस टेप को सुना। टिक्का
खाँ की आवाज को उसकी असली रिकॉर्डेड आवाज के साथ मिलाया, जो लायब्रेरी में सुरक्षित रखी थी। अपने अधिकारियों के साथ मीटिंग की और फिर
मुख्यालय में अपने उच्चस्थ अधिकारी से गुप्त डेडीकेटेड फोन पर उन्हें इस
महत्त्वपूर्ण वार्त्ता की सूचना दी। साथ ही, यह भी बताया कि उस टेप को अनुवाद के साथ सीलबन्द कर उनके पास भेज रहा है।
विभिन्न उच्च अधिकारियों के पास से होते हुए यह सूचना प्रधान
मंत्री के पास एयर चीफ की इस संस्तुती के साथ पहुँची कि मीटिंग के समय ढाका गवर्नर
हाऊस पर भारतीय वायु सेना द्वारा बम-वर्षा करनी चाहिए; ताकि पाकिस्तानी सेना एवं उनके नेताओं का मनोबल गिरे। प्रधान मंत्री ने
निर्णय लेने में अधिक देर नहीं लगाई, किन्तु आदेश देते
समय यह भी कहा गया कि कोशिश भर कोई हताहत न हो। आदेश के अनुसार भारतीय वायु सेना
के विमानों ने इतनी सटीक बम-वर्षा की, कि कोई भी
विशिष्ट व्यक्ति घायल तक नहीं हुआ और अगले ही दिन 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान ने आत्म समर्पण कर
दिया।
जब यह समाचार स्क्वाड्रन लीडर सुधीर को मिला, तो अगले ही दिन उसने यूनिट के सभी कर्मचारियों को उनकी लगन,
उनके देश प्रेम और उनके परिश्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा
की। उसी शाम को सभी अधिकारी ऑफिसर्स मेस में इकट्ठा हुए। गैदरिंग छोटी-सी ही थी पर
उत्साह और उमंग से भरी हुई। रिकॉर्डेड म्यूजिक पर डाँस हो रहा था। आज सुधीर और
उसकी अफसाना लगभग ढाई महीने पश्चात् फिर साथ-साथ डाँस कर रहे थे। आज उनको अलग करने
वाला कोई न था। तभी वेटर ने आकर अफसाना से बताया कि उसके लिए फोन आया है। फोन करके
जब अफसाना लौटी, तो उसके गाल लज्जा से लाल हो रहे थे।
उनके अब्बा ब्रिगेडियर लतीफ ने सुधीर के लिए अफसाना को ‘हाँ’ कह दिया था।
16 दिसम्बर प्रतिवर्ष विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है।
किन्तु 16 दिसम्बर का महत्त्व अफसाना और सुधीर के लिए
अलग तरह का है। 16 दिसम्बर 1972 को वे सदा के लिए एक हो गये।
(दिल्ली
प्रेस कहानी प्रतियोगिता- 2003 में पुरस्कृत एवं
यू0पी0 गवर्नर
द्वारा सम्मानित। भूतपूर्व वायुसैनिकों की संस्था एयर फोर्स एसोसियेशन की छमाही
पत्रिका ‘ईगल्स आई’ के सितम्बर’ 06 अंक से साभार उद्धृत।)
(बाद में मैंने अपनी त्रैमासिक पत्रिका "मन मयूर" के दो अंकों (अगस्त एवं नवम्बर' 2007) में धारावाहिक रुप से इस कहानी को प्रस्तुत किया था।)
(दोनों चित्र मेरे मित्र जयचाँद दास ने "मन मयूर" के लिए बनाये थे।)
(दोनों चित्र मेरे मित्र जयचाँद दास ने "मन मयूर" के लिए बनाये थे।)