प्राचीनकाल में प्रियंगु, बड़ी इलायची, नागकेसर. चन्दन, सुगन्धबाला, तेजपत्र, जटामांसी, गुग्गुल, अगरू, पीपल की छाल इत्यादि से धूमवर्तिका बनायी जाती थी और इससे धूमपान किया जाता था।
इससे सिरदर्द, श्वास-कास के रोग, दंतशूल, दाँतों की दुर्बलता, बालों का गिरना, तन्द्रा, अतिनिद्रा, वातकफज रोग मिट जाते हैं।
धूमपान के लिए दिनभर में आठ समय बताये गये हैं, जिन्हें नियमित रूप से करने के बाद कोई रोग नहीं सताता।
आज का धूमपान तो उसका अतिविकृत स्वरूप है।
'अखण्ड ज्योति'
अक्तूबर'2006 अंक से साभार
(लेखमाला: आयुर्वेद- 41,
कैसी हो हमारी दिनचर्या- 1)
अक्तूबर'2006 अंक से साभार
(लेखमाला: आयुर्वेद- 41,
कैसी हो हमारी दिनचर्या- 1)
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