चंदन का चर्खा निछावर है इस्पाती बुलेट पर
निछावर है अगरबत्ती चुरुट पर, सिग्रेट पर
नफाखोर हंसता है सरकारी रेट पर
फ्लाई करो दिन-रात, लात मारो पब्लिक के पेट पर
पुलिस आगे बढ़ी-
क्रांति को संपूर्ण बनाएगी
गुमसुम है फौज-
वो भी क्या आजादी मनाएगी
बंध गई घिग्घी-
माथे पर दर्द हुआ
नंगे हुए इनके वायदे-
नाटक बे-पर्द हुआ!
मिनिस्टर तो फूकेंगे अंधाधुंध रकम
सुना करेगी अवाम बक-बक-बकम
वतन चुकाएगा जहालत की फीस
इन पर तो फबेगी खादी नफीस
धंधा पालिटिक्स का सबसे चोखा है
बाकी ति ठगैती है, बाकी तो धोखा है
कंधों पर जो चढ़ा वो ही अनोखा है
हमने कबीर का पद ही तो धोखा है.
(1978)
("जनसत्ता" (रविवारी), 9 अगस्त 1998 से साभार)
bahut badiya...
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
नागार्जुन जी की इस कविता को पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं---------
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
फेसबुक से साभार
जवाब देंहटाएंRavinder Singh जी की पोस्ट:
13 जुलाई 2014
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है
ग़रीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है
धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्छों नहीं! कुच्छों नहीं
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है
कुच्छों नहीं, कुच्छों नहीं...
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है...
नागार्जुन