बुधवार, 1 दिसंबर 2010

नागार्जुन की कविता- 1. बाकी बच गया अंडा

पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गये चार
चार पूत भारत माता के, चारों चतुर प्रवीन
देश निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन
तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो
दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक
एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा
पुलिस पकड़ के जेल ले गई,
बाकी बच गया अंडा!
                              (1950)
("जनसत्ता" (रविवारी), 9 अगस्त 1998 से साभार) 

2 टिप्‍पणियां:

  1. नागार्जुन जी की एक अच्छी कविता को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
    सचमुच, अण्डा ही तो बचा है।

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