सोमवार, 8 अप्रैल 2013

‘वो’ स्वस्थ रहें और हम कूड़े में!


अमीर देशों के लिए कूड़ाघर बन गये गरीब देश
भारत सबसे बड़ा कचराघर
(रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के लिए यह सबसे चिंताजनक स्थिति है क्योंकि अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत दुनिया के सबसे बडे. कचरा घर में तब्दील हो गया है. पर्यावरण एजेंसियां भी इस बात पर चिंता जाहिर कर चुकी हैं कि जितना कचरा विदेशों से भारतीय बंदरगाहों पर आता है उसमें से महज 40 या 50 फीसदी कचरा ही रिसाइकिल हो पाता है. बाकी (इसमें प्लास्टिक, टायर और ई-कचरा भी) या तो जला दिया जाता है या फिर धरती में दबा दिया जाता है.)


जरा सोचिए, आपका पड़ोसी अगर अपना घर साफ रखने के लिए अपने घर का कूड़ा आपके घर में फेंक दे, कितना बुरा लगेगा और आप लड. भी जायेंगे? लेकिन आज जो वैश्‍विक स्तर पर हो रहा है, वह कड.वा सच है. लेकिन उसकी सब तरफ से अनदेखी की जा रही है. दुनिया के विकसित देश खुद को स्वच्छ रखने के लिए अपना कूड़ा-कचरा विकासशील विशेष कर भारत, इंडोनेशिया और चीन जैसे देशों में डंप कर रहे हैं. रिसाइकिलिंग के नाम पर जमा हो रहे कचरे के चलते खुद भारत विश्‍व के सबसे बडे. कचराघर में तब्दील होता जा रहा है.

एक दशक से जारी है सिलसिला : 
ब्रिटेन के ‘डिपार्टमेंट ऑफ इनवयारमेंट, फूड एंड रूरल अफेयर’ की ओर से जारी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि हर साल 12 मिलियन टन के कचरे का आखिर क्या होता है. चिंता की बात यह है कि कचरे को विदेशों खासकर एशिया में भेजने का यह सिलसिला पिछले एक दशक में दुगना हो गया है. कानून कहता है कि विदेश भेजने के बाद कचरे की रिसाइकिलिंग अनिवार्य है, जबकि पर्यावरण विभाग स्वयं ये स्वीकार करता है कि कुछ देशों में रिसाइकिलिंग के नाम पर कचरा जलाया या धरती में दबाया जा रहा है.

दबाने का नुकसान :
भारत में जितनी मात्रा में कचरा धरती में दबाया जा रहा है, उतनी ही तेजी से लैंडफिल गैसों के उत्सर्जन का खतरा बढ. रहा है. धरती में दबे कचरे से लैंडफिल गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित होता है. जनता में भयानक बीमारियां पैदा होती हैं. ध्यान रहे लैंडफिल गैसों के चलते कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी भी हो सकती है.

105 देश भेज रहे कचरा :
पहले विकसित देश भी अपना कूड़ा धरती में दफना देते थे, लेकिन इस पर प्रतिबंध लगने के बाद उन्होंने अपना कचरा डंप करने के लिए उन देशों की तलाश की जहां रिसाइकिलिंग के नाम पर कचरा निर्यात किया जा सके. यकीन नहीं होगा लेकिन विश्‍व के 105 देश अपना औद्योगिक कचरा भारत भेजते हैं.

आर्थिक पेच भी :
रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक दृष्टि से भी विकसित देशों के लिए कचरा निर्यात करना फायदेमंद है. दरअसल ब्रिटेन, अमेरिका और र्जमनी में विषैले कचरे को रिसाइकिल करने में 140 पाउंड खर्च होते हैं. दूसरी तरफ यही कचरा अगर रिसाइकिलिंग के लिए भारत भेजा जाये, तो इस पर महज 40 पाउंड का खर्च होगा.

हमारी बड़ी लाचारी :
इस मसले पर सबसे चिंताजनक बात यह है कि इसमें अमीर देशों को ही दोष नहीं दिया जा सकता. विदेशों में बाकायदा कचरा निस्तारण के लिए कानून बने हैं. लेकिन भारत सरकार इस खतरे को भांपने के बावजूद इस संबंध में कानून बनाने की नहीं सोच रही. महज कुछ आर्थिक फायदे के लिए भारतीय कानून पर्यावरण व भारतीय जनता की जान के लिए इतना बड़ा खतरा मोल ले रहा है. दुनिया भर में चिंता का विषय बन चुके कचरा निस्तारण पर गंभीर कदम उठाने की बजाय भारत सरकार बेसल कन्वेंशन को सर्मथन दे रहा है. ऐसी नीति जिसके तहत भारत अपने बंदरगाहों पर विकसित देशों को अपना कचरा निर्यात करने की सहमति देता है. विकसित देश इस पॉलिसी का सर्मथन नहीं करते और धड़ाधड. अपना कचरा भारत में डंप कर रहे हैं. 

साभार: दैनिक 'प्रभात खबर', 8 अप्रैल' 2013, 

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