गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

नागार्जुन की कविता- 2 / वह तो था बीमार

मरो भूख से, फौरन आ धमकेगा थानेदार
लिखवा लेगा घरवालों से- 'वह तो था बीमार'
अगर भूख की बातों से तुम कर न सके इंकार
फिर तो खायेंगे घरवाले हाकिम की फटकार
ले भागेगी जीप लाश को सात समुन्दर पार
अंग-अंग की चीर-फाड़ होगी फिर बारंबार
मरी भूख को मारेंगे फिर सर्जन के औजार
जो चाहेगी लिखवा लेगी डाक्टर से सरकार
जिलाधीश ही कहलायेंगे करुणा के अवतार
अंदर से धिक्कार उठेगी, बाहर से हुंकार
मंत्री लेकिन सुना करेंगे अपनी जय-जयकार
सौ का खाना खायेंगे, पर लेंगे नहीं डकार
मरो भूख से, फौरन आ धमकेगा थानेदार
लिखवा लेगा घरवालों से- 'वह तो था बीमार'
(1955)
("जनसत्ता" (रविवारी), 9 अगस्त 1998 से साभार)

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रशासनिक व्यवस्था से ओतप्रोत अति उत्तम आलोचनात्मक कविता जय बाबा नागार्जुन आप धन्य हैं माँ भारती के प्रति आपका यह ज्ञानमयी अनुदान सम्यक तौर से अत्यंत सुसंगठित व यथार्थ परक है।

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