"जो संकृति अपनी जीवन्त पृथक्कता को त्याग देगी, जो सभ्यता अपनी सक्रिय प्रतिरक्षा की उपेक्षा करेगी वह दूसरी के द्वारा निगल ली जायेगी और जो राष्ट्र इसके सहारे जीता था वह अपनी आत्मा को खोकर विनष्ट हो जायेगा."
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"भेड़िये के द्वारा आक्रान्त मेमने की तरह अपनी हत्या होने देने से कोई विकास नहीं होता, कोई प्रगति नहीं होती, न इससे कोई आध्यात्मिक योग्यता प्राप्त होने की आशा बँधती है."
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("भारतीय संस्कृति के आधार" पुस्तक से साभार)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
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